योगेश्वर देवांगन/ रायपुर: छत्तीसगढ़ ह धरम धाम के भुईया आए। इहां के कन-कन म देवालय हाबे, कोनो मानता रूपी म कोनो मंदिर म बिराजे हाबे। देबी-देवता मन कहूंचो मूर्त रूप म हावय त कहूंचो अमूर्त। इही छत्तीसगढ़ के चिन्हारी आए, अइसने मूर्त रूप म बिराजे कुकुरदेव के मंदिर जेन छत्तीसगढ़ के बालोद जिला के खपरी गांव म हावय। कुकुरदेव मंदिर नाम के संग जुड़े प्रचलिक किस्सा जान के बड़ गरब होथे।
छत्तीसगढ़ के बालोद जिला के ग्राम खपरी म कुकुरदेव मंदिर के निर्माण काल के बारे में बताये जाथे के 200 साल जुन्ना आए। मंदिर ल लाल पथरा म तरासे गे हावय। लाल पथरा म कहू-कहू नक्काशी के सुंदर नमुना तको देखे बर मिलथे। भीतरी म छोटकन गर्भगृह तको हाबे। जिहां महादेव बिराजे हावय।
कुकुरदेव मंदिर के संबंध म प्रचलित किस्सा घलो हे। बताये जाथे के बालोद अंचल म एक बंजारा निवास करत रिहिस। ओकर तिर एक ठी पोसवा कुकुर रिहिस। ओ बंजारा ह उहां के राजा तिर कुछ रूपिया उधार ले रिहिस। बेरा पोहावत गिस, फेर बंजारा ह राजा के करजा ल नइ चुका सकिस। आखिर म बंजारा ह अपन पोसवा कुकुर ल राजा ल भेट कर दिस। कुकुर ह बंजारा ले गजब मया करय ये सेती रोज भाग के आ जावय। बंजारा फेर अमरावय, कुकुर फेर आ जावय। बंजारा ह अपन कुकुर ले हलाकान होगे अउ आखरी पइत चेतावत किहिन- ‘मैं तोर ले गजब मया करर्थव फेर राजा के मोर उपर करजा हावय ये सेती तोला राजा ल भेट करे हंव। अउ अब कहू दुबारा लहुंट के तै आबे त तोला जान से मार देहूं। ‘अइसे चेताये के बाद कुकुर ल बंजारा ह राजा ल सउप के आगे’।
उही रात राजा के महल म चोरी होगे। चोर मन राजमहल ले खजाना ल लूटके लेगे। जब कुकुर गम पइस तो चुपे-चुप चोर मन के पीछू-पीछू जाके पासत रिहिस। बिहनिया होइस त कुकुर ह जिहा चोर मन जमीन म खजाना ल गड़िया के राखे रिहिस उहा के ठउर तक राजा ल लेग गे। खजाना मिलगे, चोर मन पकड़ागे। राजा ह कुकुर के काम ले बहुत खुश होगे। कुकुर के इमानदारी ले खुश होके राजा ह ओला आजाद करत किहिन ‘मैं तोर काम ले खुश हावं, तै जा अब अपन मालिक करा। मैं तोला आजाद करत हवं।’ राजा के आज्ञा पाके कुकुर बंजारा तिर लहुट आथे। कुकुर ल फेर अपन तिर पाके बंजारा के जीव म आगी बर जथे। उठाथे दू हत्था लउठी अउ कुकुर के मुड़ म कचार देथे। कुकुर के उही मेर परान छूट जथे। कुकुर के मरे के बाद लोगन मनले आरो मिलिस के राजा ह महल म चोरी के घटना ले खुश होके आजाद करे रिहिस। बंजारा ह पछतावत रहिगे। ये बात के पता जब राजा ल चलिस त वहू कुकुर के अंतिम दर्शन करे खातिर पहुंचिस अउ पूरा राजकीय सम्मान के संग ओकर अंतिम संस्कार करिस। उही ठउर म ओकर मठ बनाइस अउ ओकर सुरता एक ठी मंदिर तको बनवाइस जेन ‘कुकुरदेव’ मंदिर के नाम ले जाने गिस । कुकुरदेव मंदिर पहुंच मार्ग- कुकुरदेव के मंदिर सड़क मार्ग ले आसानी से पहुंचे जा सकत हाबे। ये मंदिर ह जिला मुख्यालय बालोद ले 10 किलो मीटर के दुरी म बालोद-राजनांदगाव रोड़ म परथे। रेल मार्ग ले उहां तक पहुंच नइये, पास के आन जिला म आके उहां पहुंचे जा सकत हाबे। इही रकम ले वायुमार्ग ले पहुंचइया मन रायपुर राजधानी ले बालोद सड़क मार्ग ले आसानी ले पहुंच सकत हाबे।